Bajrang Bali aur Mahadev ka Yudh: हनुमान शिव युद्ध
श्री हनुमान जी व भोलेनाथ शिव जी दोनों ही श्रीराम के अनन्य भक्त हैं, इसके बावजूद एक समय ऐसा भी आया था जब दोनों को एक दूसरे के साथ युद्ध करना पड़ा था। आज के लेख में हम यह जानेंगे कि श्री हनुमान जी और शिव जी के बीच में युद्ध कब हुआ और क्यों हुआ। इस युद्ध से संबंधित उल्लेख का वर्णन हमें पद्म पुराण के पताल खंड में देखने को मिलता है। आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि आज के लेख में हम क्या-क्या जानेंगे उस पर नजर डालते हैं :-
1. शिव जी और हनुमान जी में युद्ध कब हुआ ?
2. शिव जी और हनुमान जी में युद्ध क्यों हुआ ?
3. राजा वीरमणि कौन है, अयोध्या की सेना से उनका युद्ध क्यों हुआ ?
1. हनुमान जी व शिवजी में युद्ध कब हुआ और क्यों हुआ ?
यह बात उन दिनों की है जब भगवान श्री राम माता सीता को वनवास दे चुके थे। तदुपरांत श्री राम अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करते हैं। अश्वमेध यज्ञ शौर्य और वीरता का प्रतीक है। इस यज्ञ में यज्ञ स्थल पर यज्ञ तो चलता ही रहता है तथा साथ ही साथ दिग दिगांतर में स्वतंत्र भ्रमण के लिए एक अश्व को सुसज्जित करके स्वतंत्र भ्रमण के लिए छोड़ा जाता है। वह अश्व जब वापस आता है तभी यज्ञ पूर्ण होता है।
अश्वमेध यज्ञ में श्री राम ने भी ऐसा ही किया। स्वतंत्र भ्रमण के लिए अश्व छोड़ा गया। घोड़े के मस्तक पर लिखा गया किया कि यह घोड़ा श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है। इस घोड़े को दिग दिगांतर में स्वतंत्र भ्रमण के लिए छोड़ा गया है। जो भी व्यक्ति इस घोड़े को देखता है, वह इस घोड़े को प्रणाम करके आगे जाने देवे। जो व्यक्ति इस घोड़े को पकड़ने का दुस्साहस करेगा उसे श्री राम की सेना से युद्ध की चुनौती स्वीकार करनी पड़ेगी।
घोड़े के साथ घोड़े की रक्षा के लिए महाबली हनुमान, शत्रुघ्न तथा सेनापति व अयोध्या की पूरी सेना साथ में गए। घोड़ा के रक्षा के लिए सेना के साथ शत्रुघ्न , हनुमान जी व भरत के पुत्र पुष्कल सहित कई महारथी शामिल थे जिन्हें जीतना देवताओं के लिए भी संभव नहीं था। घोड़ा जिस भी राज्य में जाता , वहां के राजा घोड़ा को प्रणाम कर आगे जाने देता था । अगर कोई राजा घोड़ा को पकड़ता तो वह अयोध्या के सेना के सामने टिक नहीं पाता था।
यज्ञ का घोड़ा स्वतंत्रत भ्रमण करते हुए राजा वीरमणि के राज्य में पहुचा। वहीं पर श्री महादेव और बजरंगबली के बीच भयानक युद्ध हुआ।
2. शिव जी और हनुमान जी में युद्ध क्यों हुआ ?
अब बात ये आती है कि हनुमान जी और शिव जी के बीच में युद्ध क्यों हुआ? जबकि हनुमान जी श्री शिव जी के ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं। हनुमान जी व शिव जी दोनों ही श्रीराम के परम भक्त हैं। दोनों ही न्याय और सच का साथ देने वाले हैंं। फिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों को एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा ? इसका जवाब है अपनी अपनी कर्तव्य धर्म और मर्यादा का पालन करना।
श्री हनुमान जी और शिव जी दोनों ही अपने अपने कर्तव्यों से बंधे हुए थे। उन्होंने अपने कर्तव्य पालन को ही सर्वोपरि माना और कर्तव्य पालन के लिए एक दूसरे से युद्ध करने के लिए भी तैयार हो गए। कर्तव्य पालन से बड़ा धर्म इस दुनिया में कुछ भी नहीं है। राजा वीरमणि शिव जी के परम भक्त थे। वीरमणि की रक्षा के लिए शिवजी अयोध्या की पूरी सेना और हनुमान जी के साथ युद्ध करने के लिए खड़े हो गए।
3. राजा वीरमणि कौन है, अयोध्या की सेना से उनका युद्ध क्यों हुआ ?
राजा वीरमणि देवपुर नामक राज्य का राजा था। देवपुर का राजा श्री वीरमणि बहुत वीर थे। साथ ही वह श्री राम व श्री शिव जी के परम भक्त था। राजा वीरमणि का भाई वीरसिंग भी श्रेष्ठ वीर था। राजा वीरमणि के दो पुत्र थे – शुभंगद और रुकमांगद। दोनों ही परम शक्तिशाली और ताकतवर योद्धा थे।
राजा वीरमणि श्री भोलेनाथ का परम भक्त था। राजा वीरमणि ने श्री भोलेनाथ शिव जी का कठोर तपस्या करके श्री शिव जी को प्रसन्न किया था। श्री शिवजी उन्हें आशीर्वाद दिए थे। राजा वीर मणि अपने और अपने राज्य का रक्षा करने के लिए श्री शिव जी से आशीर्वाद प्राप्त किए थे। इस तरह देवपुर राज्य श्री शिव जी के द्वारा रक्षित था। श्री शिव जी द्वारा रक्षित होने के कारण देवपुर पर कोई भी आक्रमण करने का साहस नहीं कर पाता था।
अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कई जगह भ्रमण करने के बाद देवपुर राज्य में पहुंचा। देवपुर राज्य में वीरमणि के पुत्र रूक्मांगद घोड़ा के मस्तक में लिखी चुनौती को पढ़ा । लिखी हुई चुनौती को पढ़ कर घोड़ा पकड़ने का निश्चय किया । इस तरह घोड़ा को पकड़ लिया और अपने साथ ले गए । अयोध्या के सैनिकों से कहा कि यज्ञ का घोड़ा उनके पास है इसलिए वे जाकर शत्रुघ्न से कहें कि विधिवत युद्ध कर वो अपना अश्व छुड़ा लें।
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रुक्मांगद ने ये सूचना जब अपने पिता को दी तो वह बड़े चिंतित हुए । वह अपने पुत्र रुकमांगद से कहा की तुम्हे श्रीराम के यज्ञ का घोड़ा नहीं पकड़ना चाहिए था। श्रीराम हमारे मित्र हैं और उनसे शत्रुता करने का कोई औचित्य नहीं है इसलिए तुम यज्ञ का घोड़ा वापस लौटा आओ।
इसपर रुक्मांगद ने कहा कि हे पिताश्री मुझे क्षमा करें, मैंने घोड़े के मस्तक पर लिखी हुई युद्ध की चुनौती को पढ़कर यह घोड़ा पकड़ लिया है। साथ ही चुनौती के बदले उन्हें युद्ध की चुनौती भी दे दी है। अतः अब उन्हें बिना युद्ध के अश्व लौटना हमारा और उनका दोनों का अपमान होगा। अब तो जो हो गया है उसे बदला नहीं जा सकता, इसलिए आप मुझे युद्ध की आज्ञा दें। पुत्र की बात सुनकर राजा वीरमणि बहुत चिंतित हुए, परंतु उनके पास धर्म युक्त कोई और रास्ता नहीं होने के कारण युद्ध की अनुमति दे दी।
राजा का आदेश पाकर सेनापति रिपुवार ने कुछ ही देर में अस्त्र-शस्त्रों से सजी सेना तैयार कर दी। उनके भाई वीर सिंह, भानजे बनमित्र तथा राजकुमार रुक्मांगद भी युद्ध के लिए रथ पर आरूढ़ होकर प्रस्तुत हो गए। स्वयं शिवभक्त राजा वीरमणि भी अस्त्र-शस्त्रों के साथ रथ पर आरूढ़ होकर रणभूमि की ओर चल पड़े।
3. शत्रुघ्न का युद्ध के लिए आगे बढ़ना और हनुमान जी द्वारा उन्हें युद्ध से रोकना । क्यों ?
शत्रुघ्न को जब पता चला कि उनके यज्ञ के घोड़ा को पकड़ लिया गया है तो वह बहुत क्रोधित हुए । वह घोड़ा को छुड़ाने के लिए राजा वीरमणि से युद्ध करने का निश्चय किया । अपनी पुरी सेना के साथ युद्ध स्थल पर आ गए ।
पवनपुत्र हनुमानजी शत्रुघ्न से कहते हैं कि राजा वीरमणि के राज्य पर आक्रमण करने से पहले कुछ बातों पर विचार करना चाहिए । वे कहते हैं कि देवपुर पर विजय प्राप्त करना स्वयं परमपिता ब्रम्हा के लिए भी कठिन है । यह नगरी महाकाल द्वारा रक्षित है। अतः उचित यही होगा कि पहले हमें बातचीत द्वारा राजा वीरमणि को समझाना चाहिए ।
अगर हम न समझा पाए तो हमें श्रीराम को सूचित करना चाहिए। राजा वीरमणि श्रीराम का बहुत आदर करते हैं इसलिए वे उनकी बात नहीं टाल पाएंगे। हनुमान की बात सुन कर श्री शत्रुघ्न बोले, हमारे रहते अगर श्रीराम को युद्ध भूमि में आना पड़े, यह हमारे लिए अत्यंत लज्जा की बात है, अब जो भी हो हमें युद्ध तो करना ही पड़ेगा। यह कहकर वे सेना सहित युद्धभूमि में पहुच गए।
दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध होने लगा । हनुमान जी राजा वीरमणि के भाई महापराक्रमी वीरसिंह से युद्ध करने लगे । रुक्मांगद और शुभांगद ने शत्रुघ्न पर धावा बोल दिया ।
4. भरतपुत्र पुष्कल और राजा वीरमणि का युद्ध
भरत पुत्र पुष्कल का वीरमणि से युद्ध हुआ । राजा वीरमणि ने वीर पुष्कल पर भयानक बाण वर्षा की । दोनों अतुलनीय वीर थे। दोनों में घमासान युद्ध हुआ ।
राजा वीरमणि और पुष्कल दोनों ही तरह-तरह के शस्त्रों का प्रयोग करते हुए युद्ध करने लगे। पुष्कल और वीरमणि में बड़ा भारी युद्ध हुआ। अंत में पुष्कल ने वीरमणि पर आठ नाराच बाणों से वार किया। इस वार को राजा वीरमणि सह नहीं पाए और मुर्छित होकर अपने रथ पर गिर पड़े।
वीरमणि के घायल होने से उनके सेना में भगदड़ मच गया सब भागने लगे । अपने भक्त की ये हालत व सेना के गिरते मनोबल को देखकर श्री शिव जी स्वयं युद्ध करने मैदान में आये ।
शिव जी शत्रुघ्न से युद्ध करने लगा । शिव जी ने अपने गण विरभद्र को पुष्कल से व नंदी को हनुमान जी से युद्ध करने भेजा ।
पुष्कल और विरभद्र का युद्ध
पुष्कल व विरभद्र के बीच भारी युद्ध हुआ । पुष्कल ने अद्भूत वीरता का परिचय दिया। उन दोनों के बीच पांच दिनों तक युद्ध चलता रहा । अंत में विरभद्र ने पुष्कल के पैर को पकड़ कर चारों ओर घुमाया और जोर से पटक दिया । त्रिशूल से उसके मस्तक को काट धड़ से अलग कर दिया । इस तरह पुष्कल वीरगति को प्राप्त किया ।
महादेव और शत्रुघ्न का युद्ध
पुष्कल के मृत्यु की खबर सुनकर शत्रुघ्न बहुत दुखी व बहुत क्रोधित हुए । शत्रुघ्न का शिव जी से भयंकर युद्ध हुआ । शत्रुघ्न ने शिव जी से ग्यारह दिन तक युद्ध किया । अंत में शिव जी के घातक प्रहार से बेहोश हो गए ।
शत्रुघ्न अचेत होकर वहीं गिर पड़े|हनुमान जी यह देखकर शीघ्र ही पुष्कल और शत्रुघ्न के शरीर को रथ में रखा । उन्हे सुरक्षित स्थान पर रखकर स्वयं महादेव से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा ।
संकट मोचन महाबली हनुमान शिव युद्ध
हनुमान जी और शिव जी के बीच फिर भारी युद्ध होने लगा । हनुमान जी अत्यंत क्रोध में शिव जी से कहते हैं – मैंने तो सुना था कि आप श्री राम के उपासक हैं लेकिन आज यह बात मिथ्या साबित हो गई । अन्यथा आप श्री राम भक्तों का वध करने को आतुर नहीं होते ?
श्री शिव जी बोले कि हे पवन पुत्र श्री राम ही मेरे हृदय कमल में विराजमान है । श्री राम ही मेरे स्वामी हैं , किंतु वीरमणि मेरे परम भक्त हैं । मैने उनको उनके राज्य की रक्षा का वचन दिया है , इस लिए मै उनके तरफ से लड़ाई करने के लिए बाध्य हूं ।
भोलेनाथ महादेव की बात सुनकर हनुमानजी बहुत क्रोधित हुए । एक बार फिर हनुमान जी व शंकर जी के बीच भयंकर युद्ध होने लगा ।
शिव जी द्वारा हनुमान जी को वरदान देना
हनुमान जी और शिव जी के बीच फिर भारी युद्ध होने लगा । महावीर हनुमान के साहस और पराक्रम से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और हनुमान जी को वरदान मांगने के लिए कहते हैं । हनुमान जी कहते हैं शत्रुघ्न बेहोश है और पुष्कल मृत हैं , मुझे द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी औषधि लाना है । आप मेरे लौटने तक इन दोनों के शरीर की रक्षा करेंगे । शिव जी ये वरदान हनुमान जी को दे देते हैं ।
हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लाते हैं । उस औषधि से पुष्कल जीवित हो जाते हैं और शत्रुघ्न स्वस्थ हो जाते हैं ।
इस युद्ध में जीत किसका हुआ
शत्रुघ्न और शिव जी के बीच फिर से भारी युद्ध शुरू होता है । बहुत कोशिश के बाद भी शत्रुघ्न , शिव जी को जीत नहीं पाये । हनुमान जी शत्रुघ्न को कहते हैं कि आप राम जी को याद करिए । शत्रुघ्न राम जी को याद किए , राम जी वहां पहुंच गए ।
राम जी को देखकर शिव जी युद्ध करना बंद कर दिए और श्री राम के शरण में आ गए । वीरमणि को भी श्री राम के शरण में जाने को कहते हैं । शिव जी का आदेश पाकर वीरमणि भी श्री राम के शरण में आ गए और अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा श्री राम को लौटा देते हैं । और इस तरह यह युद्ध समाप्त होती है ।
दोस्तों आज के लेख में हमने जाना कि भोलेनाथ शिव जी और वीर हनुमान जी को कैसे परिस्थितिवश एक दूसरे से लड़ाई करना पड़ा। इस लेख के बारे में आप अपनी राय या सुझाव हमें कामेंट बाक्स में बता सकते हैं।